मित्रता हो या नाते रिस्तेदारी ऐसे संबंधों को मधुर बनाने में बहुत समय लग जाता है और काफी त्याग बलिदान करना पड़ता है समय भी बहुत देना पड़ता है!इसके बाद भी जब ऐसे संबंध बिगड़ते हैं तब बहुत कष्ट होता है !प्रेम संबंधों में तो ऐसी परिस्थिति पैदा होने पर कुछ लोग सह  पाते हैं और कई बार नहीं भी सह पाते हैं इसलिए कई बार अवसाद (तनाव) में चले जाते हैं !नशे के आदी हो जाते हैं कई बार हत्या आत्महत्या तक करते देखे जाते हैं !
   ऐसी परिस्थिति में उचित तो यह है कि किसी भी मित्रता या नाते रिस्तेदारी करने से पहले इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाना चाहिए कि ये संबंध चलेगा कितने दिन और कैसे तथा ये कहीं टूट न जाए इसके लिए क्या क्या सावधानियाँ बरती जानी चाहिए !
   संबंध तीन कारणों से बनते या बिगड़ते देखे जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में स्वार्थ के कारण ,समय के कारण, नाम के पहले अक्षर के कारण प्रभावित होकर हम अपने मित्र और शत्रु बना लिया करते हैं !

     कई बार ज्ञान प्रतिभा चरित्र कर्मठता अपनेपन ईमानदारी आदि की दृष्टि से जो हमारे मित्र बनने योग्य नहीं होते हैं उन्हें भी हम अपनी पसंद के आधीन होकर अपना मित्र बना लेते हैं और जो लोग वास्तव में हमारे मित्र बनने लायक होते हैं उनकी पहचान हम नहीं कर पाते हैं इसलिए छोटे छोटे कारण पकड़कर या अपने मूडीपन के कारण हम उनसे संबंध बिगाड़ लेते हैं या कुछ ऐसे लोगों को अपना शत्रु बना बैठते हैं जो वास्तव में हमारे लिए बहुत अच्छे हितैषी एवं अपनेपन की सोच रखने वाले होते हैं !
   1. पहला कारण स्वार्थ होता है स्वार्थ के कारण संबंध बनते बिगड़ते रहते हैं!
       किसी स्वार्थ की पूर्ति के लिए जिनसे जो संबंध बनाते हैं वो तभी तक चल पाते हैं जब तक स्वार्थ पूर्ति की आशा रहती है स्वार्थ पूर्ति होते ही या स्वार्थ पूर्ति न होने पर ऐसे संबंध शीघ्र समाप्त हो जाते हैं !इसलिए जब कोई दो पूर्व मित्र या रिस्तेदार जब आपस में  एक दूसरे की निंदा करने लगें तो ये ही नहीं समझ लेना चाहिए कि वे दोनों या उनमें से कोई एक गलत ही होगा !हो सकता है कि वे दोनों ही सही हों केवल उनका वह स्वार्थ साधन नहीं हो पाया है जिसके लिए वे दोनों एक दूसरे से जुड़े थे!इसलिए मित्रता टूट गई !
2.दूसरा कारण संबंधित लोगों के नाम के पहले अक्षरों का उनके स्वभाव पर पड़ने वाला असर !
      किसी लड़की – लड़के या स्त्री – पुरुष को देखकर यदि आपको गुस्सा लगने लगे,उसकी चर्चा या प्रशंसा सुनने में आपको बुरा लगने लगे !किसी के द्वारा किए गए अच्छे कामों में भी यदि आपका मन कमी निकालने का होने लगे अकारण ही किसी की निंदा करने का मन हो तो इसका मतलब ये कतई नहीं है कि वो व्यक्ति गलत ही हो या स्वयं आप ही गलत हों ऐसा भी नहीं है अपितु संभव ऐसा भी है कि आपके और उसके नाम के पहले अक्षर एक दूसरे के लिए अच्छे न हों इसीलिए उन अक्षरों के स्वभाव के कारण ही एक दूसरे का स्वभाव ऐसा बन गया ह
      इसी प्रकार से किसी को देखकर आपको सुख मिलता है उसकी बातें हृदय को आनंदित करती हैं उसके विषय की चर्चा या उसकी प्रशंसा सुनने में आपको अच्छा लगने लगता है उसके गलत आचरणों में भी आप अच्छाइयाँ खोजने लगते हैं !इसका मतलब ये नहीं कि वो बहुत अच्छा है या वो तुम्हारे लिए अच्छा ही होगा अपितु आपके और उसके नाम के पहले अक्षर एक दूसरे के नाम के पहले अक्षर को प्रभावित कर रहे होते हैं  !
3.तीसरा कारण उन दोनों का अपना अपना समय होता है- 

   जिस व्यक्ति का अपना समय बहुत अच्छा चल रहा होता है उससे सभी अच्छे लोग स्नेह करने लगते हैं उसके सभी काम बनने लगते हैं ! उसकी सोच अच्छी होती है वो काम अच्छे करता है इसलिए उसके कार्यों की प्रशंसा होने लगती है !इसीप्रकार से जिसका समय बुरा होता है उससे सभी बुरे लोग जुड़ने लगते हैं उसकी सोच बुरी हो जाती है उसमें नशे आदि की बुरी लतें पड़ने लगती हैं उसके द्वारा किए जाने वाले अच्छे काम बिगड़ने  और बुरे काम बनने लगते हैं !
      ऐसी परिस्थिति में उन दोनों भूतपूर्व मित्रों की परिस्थितियों में उन दोनों के समय के प्रभाव से बहुत बड़ा अंतर आ जाता है इसीलिए ऐसे समय में अच्छे समय वाला मित्र बुरे समय से ग्रस्त अपने भूतपूर्व मित्र  की मित्रता का परित्याग कर देता है !
     इस प्रकार से एक समान विचारधारा वाले दो भूतपूर्व मित्रों में अपने अच्छे और बुरे  समय के प्रभाव से उन दोनों के आचार व्यवहार संस्कार सदाचार सोच आदि में भारी अंतर आ चुका होता है जबकि पूर्व में उन दोनों के स्वभाव समान थे तभी तो मित्रता हुई थी किंतु  समय  बदल जाने से स्वभाव  बदल जाता है !पसंद नापसंद बदल जाती है जिसे पहले आप पसंद कर रहे होते हैं वही ना पसंद होने लगता है !ये सभी समय का खेल है !
     इसलिए स्वार्थ ,नाम के पहले अक्षर और समय के प्रभाव से सभी संबंध बनते या बिगड़ते हैं !इन्हीं तीनों का अनुसन्धान करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन संबंध कब तक चल पाएगा और किस कारण से टूटने की संभावना है !
      कुलमिलाकर  इस वर्णविज्ञान संबंधी हमारे अनुसंधान के द्वारा इस बात का पता लगाया जा सकता है कि किससे किसका कितना वास्तविक स्नेह है और कितना बनावटी !तथा यदि किसी का किसी के प्रति आकर्षण हो रहा है तो क्यों और यदि किसी को किसी से घृणा हो रही है तो क्यों ?कोई मित्रता करने से पहले यदि किसी को किसी से मित्रता करनी या किसी भी प्रकार के संबंध बनाने हैं तो वो संबंध चलेंगे या नहीं और चलेंगे तो कब तक तथा कैसे ?अर्थात उन दोनों में से किसको कब कब किस प्रकार की  सावधानियाँ  बरतनी पड़ेंगी !यह जानने के लिए हमारे यहाँ संपर्क किया जा सकता है !
     वैसे तो मित्रता जैसी संबंधों की महान अवस्था को कभी भी पसंद या नापसंद के आधार पर नहीं बनाना या छोड़ देना चाहिए क्योंकि पसंद मन का विषय है और मन तो बदला करता है!इसलिए ऐसी मित्रता भी किसी के प्रति बनती बिगड़ती रहती है!                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                  

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