मौसमविज्ञान के माध्यम से जिस प्रकार से प्रकृति का अध्ययन करके प्रकृति संबंधी घटनाओं(वर्षा,बाढ़,आँधी-तूफान आदि) का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है इसी प्रकार से ‘शरीरविज्ञान’ के द्वारा शरीरों में रोग चोट आदि लगने न लगने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव है! ऐसे ही ‘मनोविज्ञान’ के द्वारा मन संबंधी घटनाओं (भय,चिंता,निराशा आदि) का पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए !
      ‘संबंधविज्ञान’ के माध्यम से इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किस व्यक्ति का स्वभाव कैसा है और उसका किस व्यक्ति के साथ कैसा संबंध रहेगा !
      ‘आकृतिविज्ञान’ के द्वारा प्रकृति से लेकर प्राणियों तक सभी की आकृतियों के आधार पर उसके भविष्य के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
       ‘समयविज्ञान’ के माध्यम से प्रकृति से लेकर प्राणियों तक का अध्ययन करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया  जा सकता है कि प्रकृति में ,प्राणियों में और उनके स्वभावों में किस वर्ष कितने समय के लिए किस विषय से सम्बंधित क्या घटित होगा ? 

1.   मौसमविज्ञान :- मौसम का अध्ययन करने के लिए ‘समयविज्ञान’ और ‘आकृतिविज्ञान’ इसमें दो बातों का अध्ययन करना होता है !
  मौसमसमयविज्ञान प्रकृति में कब क्या घटित होगा ?इस बिषय का पूर्वानुमान ‘समयविज्ञान’ के द्वारा ही लगाया या जा सकता है !क्योंकि समयविज्ञान का अध्ययन करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन सा वर्ष महीना दिन आदि किस किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं को जन्म दे सकता है !जैसे कुछ समय आँधी आने का होता है कुछ पानी बरसने का एवं कुछ समय आँधी पानी दोनों एक साथ होने का होता है !कुछ सूखा पड़ने का समय होता है !इसी प्रकार से कुछ समय भूकंप आने का होता है !इसके द्वारा उस समय को खोजने के लिए समय का अनुसंधान किया जाता है !
     मौसम’आकृतिविज्ञान’प्रकृति में किस प्रकार की घटना किस स्थान पर घटित होगी !स्थान को खोजने के लिए प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों में समय समय पर होने वाले आकार परिवर्तनों अर्थात बदलते हुए लक्षणों का अध्ययन करके इस बात का पूर्वानुमान लगाना होता है कि निकट भविष्य में अमुक समय में यदि इस प्रकार की घटना घटित होने वाली है तो उस प्रकार की घटना को अपने यहाँ घटित करने के लिए किस स्थान की प्रकृति तैयारी कर रही है !इसके लिए आकाश से लेकर पृथ्वी तक वृक्षों बनस्पतियों तालाबों नदियों समुद्रों पहाड़ों समेत प्रकृति के समस्त लक्षणों का अधययन करना होता है !
   2.  शरीरविज्ञाननिकट भविष्य में शरीर में होने वाले रोगों आदि का अध्ययन करने के लिए भी ‘समयविज्ञान’ और ‘आकृतिविज्ञान’ दोनों का अध्ययन करना होता है !
    समयविज्ञान के द्वारा इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि निकट भविष्य में किस किस प्रकार के रोगों के होने का समय है और ‘आकृतिविज्ञान’ के द्वारा प्राकृतिक लक्षणों का अध्ययन करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि इस प्रकार के रोग फैलने की संभावनाएँ किस स्थान पर अधिक हैं !
   विशेष इस प्रकार से निश्चित समय और स्थान निर्धारित हो जाने के बाद भी प्रायः देखा जाता है कि वहाँ के  सभी लोग तो उस प्रकार के रोगों से पीड़ित नहीं होते हैं !
      इसका कारण उन सभी लोगों का अपना अपना व्यक्तिगत समय होता है !उस समय जिनका अपना समय ठीक चल रहा होता है वे ऐसा रोग कारक समय होने पर भी या तो रोगी होते ही नहीं हैं और यदि होते भी हैं तो अल्प चिकित्सा या बिना चिकित्सा के भी स्वस्थ होते देखे जाते हैं !
      इसके विपरीत जिनका अपना समय अच्छा नहीं चल रहा होता है वे बीमार तो वैसे भी चल ही रहे होते हैं किंतु ऐसा समय आ  जाने पर उनकी स्वास्थ्य समस्याएँ और अधिक बढ़ते देखी जाती हैं !
 इसी विषय में विशेष आवश्यक बात –
    ऐसी परिस्थिति दुर्घटनाओं के समय भी देखी जाती है जिसमें भूकंप एक्सीडेंट आदि किसी भी प्रकार की दुर्घटना घटित होने पर बहुत लोग पीड़ित होते हैं किंतु उन सभी के अपने अपने समय के अनुसार उन सभी पर उस दुर्घटना का असर भी अलग अलग प्रकार का होता है  !
     इसी प्रकार से चिकित्सा करते समय भी अनुभव किया जा सकता है !किसी एक प्रकार के कुछ रोगी यदि किसी एक ही चिकित्सक की एक प्रकार की सघन चिकित्सा प्रक्रिया में चिकित्सा का लाभ ले रहे होते हैं तो उन प्रत्येक के अपने अपने समय के अनुसार उनके परिणाम अलग अलग होते देखे जाते हैं !
      ऐसी सभी परिस्थितियों में समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है इसलिए ऐसी सभी परिस्थितियों का पूर्वानुमान ‘समयविज्ञान’ एवं ‘आकृतिविज्ञान’ के संयुक्त अध्ययन से लगाया जा सकता है !
    

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